औरत, आदमी और छत , भाग 30
भाग,३०
वीरेंद्र गाड़ी लेकर निकल गया था।माँ ने गाड़ी की आवाज़ भी सुनी थी ,और मिन्नी को दी हुई आवाज भी सुनी थी।खामोश रही थी, क्या बोले इन दोनों के बीच? वीरू का पता नहीं कैसा दिमाग है,इस लड़की के बिना एक पल रह भी नहीं सकता, और इस के साथ निभा भी नहीं सकता। मिन्नी भी पागल है,चुप्पी ओढ़ कर बैठ जाती है,क्यों नहीं झगड़ा कर के अपनी अहमियत का अहसास कराती।पर शायद ठीक ही करती है दोनों एक जैसे हो जायेंगे तो गृहस्थी कैसे बसेगी।
मिन्नी बहुत प्यारी और समझदार लड़की है बहुत सहनशील है, पर अति तो किसी भी चीज की बुरी होती है , अच्छाई की भी बुराई की भी।
पाँच बज गए थे , गेट पर आवाज़ हुई थी, कमला ही आती है इस वक्त तो।बच्चे उठे हुए थे, माँ जाकर बारी बारी दोनों को बाहर ले आई थी।मिन्नी सो ही रही थी।डुगू अपनी माँ के साथ ज्यादा रहना चाहता है,डिंकी तो किसी के पास भी रह लेती है।पापा की तो जान है वो,रास्ते से भी फोन करके कहेगा डिंकी के कान पे फोन लगा दे माँ।
अभी दीदी नहीं उठी क्या अम्मा?आपको चाय बना दूंं?
बना ले, सोने दे उसे।
कमला माँ को चाय ही दे रही थी कि माँ के फोन की घंटी बजी।
माँ मिन्नी फोन नहीं उठा रही, बात करा दो उससे।
सो रही है वो,उठेगी जब करा दूंगी।
आप जगा दे ,कमला होगी,उसे कह़े काम है उससे।
जा कमला तेरी दीदी को दे दे ये फोन।
दीदी,उठो साहब का फोन है।
कमला उस को फोन देकर उठा जाती है।
जी कहिए?
गुस्सा नहीं उतरा मेडम
आप काम बतायें?
मै तेरे से बहुत प्यार करता हूँ मिन्नी।
लगता है नशा ज्यादा कर लिया है,शायद अभी से ही।
क्यों बिना नशे के ये बात नहीं कह सकता मैं।
मुझे कुछ नहीं पता।
अच्छा सुन बच्चों को दूध पिला ले, और तैयार हो जा बढ़ियां से, मैं एक घंटे में आ रहा हूँ।घूमने चलते हैं।
मुझे कहीं नही जाना,आप अपना काम संभाले, वरना हर्जाना हो जायेगा।
दिमाग मत खराब कर यार, बोल दिया न कि तैयार हो जा।
नहीं होना मुझे तैयार वैयार। मिन्नी रूआंसी सी और गुस्से में थी। आप मुझे समझते क्या है, मैं कोइ चाबी का खिलोना हूँ क्या ,व जो कह दिया स्माइल करो तो स्माइल करेगा, चुप का इशारा तो चुप हो जायेगा।
रास्ते में लड़ लेना यार, आज मूड अच्छा है,इसलिए तेरी बाते सुन रहा हूँ।
मुझे पता है जनाब, आप को आप से कहीं अधिक जानती हूँ।
तो ये भी जानती होगी खुद से ज्यादा प्यार करता हूँ तेरे से।
जी यही तो सबसे ज्यादा जानती हूँ।
तभी माँ की आवाज़ सुनाई देती है, मिन्नी ," कल की तेरी छुट्टी है तो मैं आज एक बार गाँव चली जाती हूँ, कल शाम तक आ जाऊँगी"।
वीरेंद्र को शायद फोन पर ये सब सुन गया था।उसने फोन ही काट दिया था।वीरेंद्र के चचेरे भाई शिवजीत आये हुए थे। मिन्नी उन के लिए चाय भेजती हैं। माँ तैयार हो जाती है जाने के लिए।
माँ जल्दी आ जाना, मेरा मन नहीं लगता अकेले।
लाडो मन मेरा भी नहीं लगेगा, पर घर संभालना भी जरूरी है।एक बार खेत भी देख के आऊँगी। जल्दी आ जाऊँ गी तूं चिंता न कर।वीरू को फोन कर देती हूँ जल्दी आ जायेगा।
रहने दीजिए माँ, आ जायेंगे जब आना होगा।
तुम लोगों से छोटे बच्चे भी अच्छे होते हैं, वो भी सारा दिन नहीं झगड़ते।
मिन्नी चुप ही रही थी।
माँ चली गई थी, मिन्नी ने मशीन में कपड़े डाल दिए थे।
कमला बर्तन साफ कर बच्चों के पास बैठ गई थी,मिन्नी ने सब्जी बना ली थी।बच्चों के लिए भी दलिया बनाया था।
कमला से कहकर अलमारी भी साफ करवाई थी।
"मैं नहा कर आती हूँ कमला तब तक तूं बैठ इन के पास।"
मिन्नी ने बाल धोये थे। कल तेल लगा लूंगी।
सात बज गए थे। प्रेस वाला कपड़े दे गया था।।मिन्नी ने उसे कल सुबह बुलाया था।आज पता नहीं मन क्यों उदास थ? वैसे तो वीरेंद्र का रूखा व्यवहार उसे हर पल अंदर तक हिला देता था,पर आज मन माँ और पापा को याद कर र हा था। कितने साल हो ग ए पापा को देखे।पर फिर उन का व्यवहार याद करके उसे वितृष्णा सी हो गई थी। माँ को तो गए ही ज़माना हो गया था। कितना ध्यान रखती थी माँँ, मीनू हर किसी के सामने बाल न खोला कर नज़र लग जायेगी। हर टाईम पढ़ती रहती है मेरी बेटी ले ये थोड़ा सा दूध पी ले।
मंमी दूध की आपको जरूरत है, मुझे नहीं।
अरे मेरे तो बीत गया है बेटा तेरा समय आनेवाला है,पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ी होना, एक मिसाल कायम करना, मेरी तरह़ मत पिसना बच्ची।
मिन्नी की आँखे नम हो ग ई थी।
तभी वीरेंद्र का फोन था उसके फोन पर,लेट हो जाऊँगा ,खाना भी खाकर आऊंगा।
जी,ठीक है।
कमला ने उसके हावभाव से समझ लिया था,साहब देर से आयेंगे।
मैं रूक जाती हूँ दीदी, सुबह चली जाऊँगी।
नहीं कमला तेरा बेटा डयूटी से देरी से आता है, तुझे खाना भी बनाना पड़ता है,कोई एमरजेंसी हो तो अलग बात है।
फिर भी आप अकेली दीदी।
कोई बात नहीं तुम निकल जाओ।
मैं आपको बिना खिलाये न हीं जाऊँगी,मुझे पता है आप खाना नहीं बनायेगी।
ये सच भी था, उसनें बनाना भी नहीं था।
कमला उसको खिलाकर ,रसोई समेट कर निकल ग ई थी।
बच्चे सो ग ए थे नौं बज ग ए थे,एकाएक किसी नम्बर से घंटी आई थी।
मिन्नी विवेक बोल रहा हूँ।
नमस्ते भैया, कैसे हैं, अच्छा किया आपने फोन कर लिया, किसी अपने से बात करने का बहुत मन था,आज दिल बहुत उदास है।
मिन्नी एक बैड न्यूज़ है
भैया?
तेरे पापा आधा घंटा पहले हमें छोड़ ग ए हैंऔर उनकी ये दिली इच्छा थी कि वो तुझे देखें।
मुझे?
मरने से पहले आत्मा सारे गुनाह कबूल करवा देती है बहना, और शिकवे तो जीते जी के होते हैं मरने के बाद क्या बचता है?
एक तबाही जिस में आप दूसरे को झोंक जाते हैं।सिसक उठी थी मिन्नी।
कोई बात नहीं, माफ करदे बहना उनकी आत्मा को भी शांति मिलेगी। वहाँ तेरा इंतजार र हेगा, अंतिम संस्कार पर।
मैं देखती हूँ, भाई कोई टैक्सी बुक करती हूँ, दोंनो बच्चे भी बहुत छोटे हैं अभी ,किसी की मदद लेती हूँ।
टैक्सी?वीरू कहाँ है?
वो अपने काम में व्यस्त रहते है,उनको समय ही नहीं मिलता।
मतलब?
खैर मैं पहुंचता हूँ मिन्नी, तूं परेशान न हो,सुबह छह बजे तक पहुंच जाऊँगा, और तेरे वहाँ से तीन घंटे का ही तो सफ़र है।
आप प्लीज़ परेशान मत हों भैया मैं प्रबंध कर लूंगी।
अरे मुझे तो जाना ही है, तुझे भी लेता चला जाऊँगा।
फोन कट गया था।
मिन्नी खामोश सी बैठी थी, उसे रोना भी नहीं आ रहा था।
आधे घंटे बाद गाड़ी रूकी थी,वीरेंद्र आ गया था।मिन्नी उठ कर गेट खोल देती है।
दूसरे कमरे की लाईट आफ और बरामदे में भी माँ का बैड नहीं था।
माँ कहाँ है?
गाँव में ग ई हैं।
बता देती मैं जल्दी आ जाता।
एक खामोशी।
कुछ लेंगे।
विवेक का फोन आया था क्या?
जी।
विवेक मिन्नी का दूर का कजिन और वीरेंद्र का यूनिवर्सिटी का दोस्त था ।
तुम्हारे पापा नहीं रहे,उसनें बताया था।
जी।
जाना तो होगा।
आप परेशान न होंवे,विवेक भैया कह रहे थे वो सुबह सुबह पहुंच जायेंगे और मुझे साथ ले जायेंगे।
अच्छा ,आज विवेक भैया भी आप को लेकर जाने वाले हो ग ए मैडम, वो समय याद करो जब कामकाजी महिला आवास में दीवारों से बातें करती थी।
वीरेन,नशे में कम से कम अपने रिश्ते की गरिमा को याद रखो।गर मैं उस वक्त दीवारों से बात करती थी न तो आज भी मेरी वही स्थिति है,बस दीवारें बदल गई हैं,और हाँ मैने तो भैया को बोला था कि मैं टैक्सी से ले लूंगी पर भैया बोले, मुझे भी जाना है तूं अकेली जायेगी तो अच्छा नहीं लगेगा।
अकेली जाओगी, मैं मर गया था क्या?
जो इंसान बिना कहीं गए मुझे मेरे अतीत के उलाहने दे सकता है,उस से मैं क्या उम्मीद रखूं कि वो अपना अमूल्य समय औँर अपनी गाड़ी का तेल मेरे मरे बाप के लिए खर्च करेगा।
मिन्नी
चिल्लायें मत, चिल्लाना मुझे भी आता है,गर कोई आपकी मोहब्बत आपकी इज्ज़त की खातिर खामोश रह जाता है तो उसे कमजोर मत समझें।और हाँ मैं हास्टल में रहती थी तो कोई गुनाह नहीं था।इज्ज़त से कमा र ही थीऔर खा रही थी।
तन्हाई में हर कोई दीवारों से ही बाते नहीं कर पाता ये हुनर भी हरेक में नहीं होता।
मिन्नी बच्चों के साइड तकिये लगाकर बाहर बरामदे में चली गई थी।वहाँ रखी कुर्सी पर बैठ गई थी।
कपड़े बदल कर वीरेन भी बाहर आ गया था।
"सो जा अब सुबह जल्दी निकलेंगे।"
"कोई जरूरत नहीं है मैं खुद संभाल लूंगी मोहताज़ नहीं हूँ किसी भी रिश्ते की और न ही कभी थी।आराम करें आप, सो जाऊँगी मैं भी,ये बेज़्ज़ती एक दिन का नहीं रोज कि किस्सा है मेरे लिए।"
वीरेंद्र अंदर न जाकर आँगन में ही टहलने लगा, सिगरेट लगा ली थी उसनें।मिन्नी ने अंदर जाकर आधी नींद की गोली ली और खाकर सो ग ई। सुबह वही साढे पाँच बजे आँख खुली, उसके उठते ही वीरेंद्र भी उठ गया था।
"तैयार हो जाओ , फटाफट निकलते हैं।"
"मैं चली जाऊँगी, वीरेन, आप अपना काम संभाले।"
"मिन्नी हद हो गई यार, नशे में कुछ कहा जाता है तो उसे ही पकड़ कर बैठ जाती हो तुम।"
"नशे में ही सच बोलते हैं वीरेन आप,बिना नशे के नहीं,और आप नशे में होते कब नहीं है।मेरे साथ तो जो समय रहते हैं नशे में ही रहते हैं।"
"अच्छा भ ई नहीं पिऊंगा अब , माफ कर दे अब तो,चाय तो पिला दे।"
मिन्नी खामोश सी रसोई में चली ग ई थी। उसका फोन बजा था,पर वीरेंद्र ने उठा लिया था।
"यार तू निकल जा सीधा, हम पहुंच जायेंगे।बस घंटे मे निकल लेंगे।"
"तेरी बहन नहा रही है वहीं बात कर लियो जो करनी है,अब गाडी ड्राइव कर ले।"
मिन्नी चाय लेकर आई तो उसनें उसे बाहों में ले लिया था।
"आज के बाद नहीं पिऊंगा डियर"।
मिन्नी चुपचाप चाय पी रही थी।
"मेरे कपड़े निकाल दे, मैं नहा लेता हूँ, तब तक तूं बच्चों को दूध पिला ले। गाड़ी में जो समान रखना है, वो निकाल दे। जो इन के लिए मैं वो झूले वाली सीट लाया था, वो दोनों भी निकाल ले।"
मिन्नी ने चुपचाप उसके कपड़े निकाल दिये थे।बच्चों के लिए भी सारा सामान निकाल कर पैक कर लिया था। उसनें पहले डुगू को उठाकर तैयार कर दिया था। तब तक डिंकी भी उठ गई थी, उसको तैयार करके मिन्नी न हाने चली गई थी।बच्चों के दोनों तरफ तकिये लगा ग ई थी। वीरेंद्र गाड़ी चैक करके आ चुका था।जूस का गिलास सामने रखा था,एक छोटी प्लेट मे कुछ काजू और कुछ बदाम भी रखे थे।उसके होठों पर मुस्कुराहट आ ग ई, कितना भी नाराज़ रहे कितने भी दिन नाराज रहे , पर उसके खाने का हर समय ध्यान रखती है।
वो नहाकर आ चुकी थी।वीरेंद्र जूस पी रहा था।
" तुमनें क्या लिया है?"
"मुझे भूख नहीं है।"
'"रात को नींद की गोली खाकर सोई थी, सुबह खाली पेट, मरना है क्या, रास्ते में ये दोनो भी दूध पियें गे। चल जूस पी या लस्सी बना ले।"
"मैने कहा न मुझे कुछ नहीं पीना।"
"और तुम्हें पता है न मैं एक बार जो बोल देता हूँ उसमें न सुनने की मुझे आदत नहीं है। और सामान क हाँ है जो गाड़ी म़े रखना है।"
मिन्नी ने सामान और पानी की बोतल दे दी थी। बच्चों के लिए दूध का थर्मस भी रख लिया था।
मिन्नी ने एक कटोरी दही में नमक डाल कर खा लिया था।
माँ को फोन करके चाबी बता.दी थी।कमला को भी फोन कर दिया था।
वीरेंद्र गाड़ी चला रहा था,उसनें मिन्नी से कहा था ,
"हर बात पर गुस्सा मत हुआ कर यार। कितना गुस्सा करती है तूं।"
"और आप अपनी बातों को नहीं देखते, कुछ भी कह देते" हैं,।
"अच्छा सुन रीति को भी लेना है ना?"
नहीं ।
"यार उसके भी तो नाना थे वो।"
"आप जीते जी जिन रिश्तों का संबल नहीं बन सकते, तो मरने के बाद तो रह ही.क्या जाता है? ये दोनों बहुत छोटे हैं, मेरे बिना रह न हीं पायेंगे, इसलिए जा रहे हैं।औँर किसी रिश्ते के तहत मैं भी नहीं जा रही,सिर्फ एक मरने वाले की आखरी इच्छा. को निभाने जा रही हूँ।"
वीरेन्द्र खामोश हो गया था।
लगभग साढे नौं बजे वो वहाँ पहुंच ग ए थे।सब तैयारियां हो चुकी थी, शायद मिन्नी का ही इंतजार था।गाड़ी रुकते ही शांत पर उदास आँखों वाली लड़की अपने बेटे को लेकर घर की तरफ बड़ी थी,उसके पीछे वीरेंद्र था डिंकी को गोद में लिए।तभी एक अठारह उन्नीस साल का लड़का वीरेन के पैरों की तरफ झुका था,"नमस्ते फूफा जी" उसने डिंकी को वीरेंद्र की गोदी से ले लिया था।डिंकी को घर की औरतों के सुपुर्द करके
वो बाहर आ गया था।जहां विवेक और वीरेंद्र खड़े थे।
" मीनू बुआ एक बार आप बाहर आकर दादू से मिल लें, फिर हम ,"उसनें आगे की बात पूरी नहीं की थी।
मिन्नी बाहर आई थी,उदास आँखों वाली लड़की कुछ खोई सी थी। उसने अंतिम यात्रा पर जाते अपने पिता की खुली आँखों को हाथ के सहारे से बंद कर दिया था,और हाथ जोड़ कर अंतिम विदा दे दी थी।
"मीनू माफ कर दे बाऊजी को, ताकि उनका आत्मा दुखी न हो।भाभी ने कहा था।"
मिन्नी घर के अंदर चली गई थी तेज कदमों से, उसे अपनी माँ का अंतिम समय याद आ गया, और वो फूट फूट कर रो पड़ी।
आखिर कार बाप था भ ई दिल तो दुखी होता ही है।
जितने मुहँ उतनी बातें। दीदी ने मिन्नी से पूछा था,"कपड़े हैं तुम्हारे पास और बदलने को।"
"हाँ रखें हैं गाड़ी में। "
"पहले नहा कर कपड़ें बदल फिर बच्चों को उठाना।"
मिन्नी गाड़ी से जाकर बैग उठा लाई थी, भाभी ने आँगन के साथ बाथरूम भी धो दिया था।
"मिन्नी पहले तुम नहालो, बच्चे छोटे हैं., सिर पर भी पानी डाल लेना।"
मिन्नी ने नहाकर कपड़े बदल लिए थे।
'बच्चों को भी नहलाना है क्या भाभीजी?"
"नहीं वो पड़ोस में हैं उनको किसी ने भी टच नहीं किया है" और जाओ भतीजी के साथ सरला के घर में दूध पिलालो।
भाभी ने उसके उतारे कपड़े उसे ही कहकर पानी से निकलवा दिए थे।
शमशान से आदमी भी आकर नहाने लगे थे, भतीजे ने मिन्नी से आकर फूफा जी के कपड़े माँगे थे।मिन्नी ने एक पोलीबैग साथ में दे दिया था,उतारे कपड़े इस में रख देंगे।
सब निपट गया था, मिन्नी ने भाभी से इज़ाजत माँगी थी।
भाभी और दीदी ने रूकने का इसरार किया था।मिन्नी ये सोच कर हैरान थी कि जब वो दुधमुंही बच्ची के साथ बेघर थी तो सब ने नजरें पलट ली थी।और अब जब उसके पास भी घर है पति है, परिवार है, सब इसरार कर रहें हैं रूकने का।
माँ सही कहती थी, "चढ़ते सूरज को सब नमन करते है"।।
नहीं भाभी रूकना तो नहीं हो पायेगा, फिर कभी।
"पापा की तेरहंवी पर न पहुंचेगी "?मीनू,, दीदी ने कहा था।
"आप हो न दीदी, मेरी और से भी निभा देना।"
"बड़ी बेटी कैसी है तेरी?"क्या नाम है उसका।?
जी , रीतिका,"सब बढि़या।"
भतीजी से पूछा था कि तेरे पापा कहाँ हैं? उसने बताया था नशा मुक्ति वाले ले ग ए हैं, बहुत दंगा करते थे पीकर।
उफ़्फ़ ,मिन्नी ने बच्ची के सिर पर हाथ रखा था।
पढ़ाई मत छोड़ना बेटी, खूब पढ़ना।
जी बुआ ,बिल्कुल आप जैसे।
मिन्नी की आँखे नम हो ग ई थी।
मुझ से कहीं ज्यादा बेटा।
तभी विवेक वीरेंद्र को लेकर अंदर आया था,उसनें सभी से परिचय करवाया था वीरेंद्र का।
अभिवादन के बाद भाभी ने वीरेंद्र को कुर्सी दी थी बैठने के लिए। भतीजी जल्दी से चाय बना लाई थी।विवेक और वीरेंद्र को चाय देकर उसने मिन्नी. की तरफ भी चाय की थी।
थैंक्स बेटा ,मैं चाय नहीं पीती।
मीनू बुआ पर मंमी तो कहती हैं,कि आप बहुत चाय पीती थी।
वो उस वक्त की बात थी बच्चा।
वीरेंद् नजरें बचा कर मिन्नी को ही देख रहा था।डिंकी उसकी गोद में थी।
हमें तो अब चलना चाहिए, ठीक है विवेक भैया।
जैसा ठीक समझो मिन्नी।
मिन्नी खड़ी हो गई थी , वीरेंद्र सब की तरफ हाथ जोड़ कर गाड़ी की तरफ बढ़ ग ए थे। मिन्नी ने देखा भतीजी अंदर खड़ी उसे बड़ी स्नेहिल नजरों से देख रही थी ,वो अंदर गई, मुठ्ठी मे दबे हजार रूपये उस को दे दिए थे।
बुआ?
अपनी किसी जरूरत प र खर्च कर लेना। चुपचाप रख लो।
बुआ फिर आओगी न?
देखती हूँ,एक दर्द भरी मुस्कान उसके होठों पर खिच गई थी।
वो बाहर की तरफ आ गई थी।भाभी आँगन में खड़ी थी।
सारे शिकवे भुलाने की कोशिश करना मीनू,उनकी आँखे नम थी।
आप अपना व बच्चों का ध्यान रखिएगा। कह कर गाड़ी की तरफ बढ़ गई थी मिन्नी।
वीरेंद्र डिंकी को गोदी में लिए उसका इंतजार कर रहा था।डुगू सो चुका था।मिन्नी ने झूले वाली सीट पर लिटा दिया था डुगू को और बेल्ट कस दी थी।डिंकी को उसनें लेना चाहा पर वो अपने पापा से चिपक ग ई थी।
पापा ड्राइव करेंगे बेटा आ जाओ मंमां पास।
डिंकी स्माइल कर के फिर अपने पापा को चिपक जाती थी।
वीरेंद्र ने गाड़ी स्टार्ट कर दी थी।
मिन्नी ने जबरदस्ती की थी डिंकी. को लेने के लिए पर वीरेंद्र ने मना कर दिया था।
रहने दे मैं चला लूंगा, उसनें डिंकी को गोदी में बैठा कर सीट बेल्ट लगा ली थी थोड़ी देर में डिंकी सो गई थी।शहर क्रास हो चुका था। वीरेंद्र ने एक ढाबे पर गाड़ी लगा दी थी।
चल खाना खा लेते हैं।
मिन्नी ने बच्चों के थर्मस का दूध वहाँ घूम रहे पिल्ले को पीला दिया था।दूध का एक और पैकेट लेकर गर्म करवा दिया था।
वीरेंद्र ने खाने का ऑर्डर कर दिया था।
तूने वहाँ चाय क्यों नहीं पी मिन्नी?
मन नहीं था।
तूं हर बात को दिल पे क्यों ले लेती है? खाना खा रही है,या रस्म निभा रही है?
खा रही हूँ, और रस्में नहीं निभती मुझसे।
तीन घंटे बाद घर पहुंच ग ए थे, साढे पाँच बज चुके थे।
वीरेंद्र गाड़ी रोक.ही रहा था कि मिन्नी ने उसका हाथ पकड़ लिया था।
सुनो आपने कहा था न कि आज से मैं अब शराब नहीं पीऊंगा।
तो क्या हुआ मैंने बोतल खोल ली है।वीरेंद्र गुस्से में बोला था।
मैं तो याद दिला रही थी आपको।
वीरेंद्र ने दोनो हाथ उसकी तरफ इस कदर जोड दिए कि मिन्नी को खुद से वितृष्णा सी हो उठी। वो डुगू को लेकर चुपचाप अंदर चली गई। माँ आ चुकी थी।
डुगू को उन्हें पकड़ा कर वो सामान लेने तथा बेटी को लेने बाहर आ गई थी।वीरेंद्र डिंकी को झूले से अपनी गोदी में ले चुका था।मिन्नी ने सामान उठा लिया और अंदर चली गई।
मिन्नी बेटा तेरे पापा गुज़र ग ए थे,तो मेरे को भी लेकर चलते तुम लोग।वहाँ क्या कहते होगें कि इस की सुसराल से कोई भी नहीं आया।
ऐसा कुछ नहीं माँ, कोई कुछ नहीं कहता।पहले बड़ा मैं आती जाती थी।
पर बेटी ऐसे समय में तो दुश्मन के यहाँ भी जाना बनता हैऔर वो तो पीहर है तेरा,और हमारे समधी।
माँ मैं न हा लूं आप तब तक इन बच्चों को देख लो।
मिन्नी नहा कर चाय बनाकर वीरेंद्र को और माँ को देती हैऔर अपनी चाय लेकर अंदर चली जाती है।तभी बाहर से कोई आता है,शायद गाँव के ही लोग हैं।वीरेंद्र कमला से पानी मंगवाता है उन के लिएऔर उन के साथ ही निकल जाता है। माँ अंदर आती है, मिन्नी चुपचाप लेटी हुई है, माँ उसके सिर को प्यार से सहलाती है तो मिन्नी की रूलाई फूट जाती है,उसे जरूरत थी किसी के कान्धें की किसी के स्नेहिल स्पर्ष की जो उसे माँ ने दिया था।माँ ने उसे रोने दिया था, बस अपना स्पर्श देती रही थी।सीने का बोझ कम हो गया तो वो खुद ही थम ग ई थी।
मैं खाना बना लेती हूँ माँ।
रहने दे सब्जी मैने बना दी थी, रोटी कमला बना देगी, प्रेस वाला कपड़े ले गया है, सुबह दे जायेगा।तूं आराम कर।प्रेस वाला कपड़े ले गया था,सुबह दे जायेगा।
बच्चों के लिए मैने खिचड़ी बना दी है। मैं भी खिचड़ी ही खाऊँगी।
रात के नौं बज गए थे। गाड़ी रूकी थी, यानि वीरेंद्र आ गया था।
मिन्नी उठ कर रसोई में चली ग ई थी कमरे में पानी नहीं रखा था।
खाना लगा दे, भूख लगी है।
जी।
उसने फटाफट वीरेंद्र के लिए सलाद काट कर फुलके लगा दिए थे।रोटी खिला कर वो रसोई समेट आई थी।आज खाने का मन ही नहीं था।
बैड पर लेटी मिन्नी अपने अतीत में गोते लगा रही थी,कैसा व्यवहार था पापा का सबके प्रति,कभी दो बोल प्यार के नहीं बोले अपने बच्चों से,कभी किसी के हमदर्द नहीं बने,और जब उन्हें प्यार और स्नेह की जरुरत हुई तो वक्त ने ही नकार दिया, अक्सर इंसान जो देता है वही पाता है। रात बहुत गहरा चुकी थी,शायद दौ बज ग ए थे।नींद पता नहीं कहाँ चली गई थी।वीरेंद्र पानी पीने के लिए उठा था, जागती हुई मिन्नी को अपने आगोश में ले लिया था उसने।
रात का अन्धेरा सुबह मे, तब्दील हो जाता था,और सुबह का उजाला सुरमई संध्या मे। बस जीवन चक्र यूं ही चल रहा था, डिंकी और डुगू तीन साल के हो ग ए थे।रीति भी बड़ी हो ग ई थी।हालात इंसान मे कितना संतोष पैदा कर देते हैं न, वो कभी अपनी माँ से नहीं पूछती थी कि तुम मुझे अपने पास क्यों नहीं रखती।डिंकी और डुगू से बहुत प्यार करती थी वो।मिन्नी हर सप्ताह दोनों बच्चों को लेकर आती थी उसके पास।डुगू तो रोने ही लग जाता था, मुझे दीदी पास रहना है।
मिन्नी ने वीरेंद्र को कह कह कर शहर में एक मकान खरीद लिया था अपनी बचत भी मिलाई थी। वीरेंद्र का स्वभाव पहले से भी ज्यादा अक्खड़ हो गया था। मिन्नी के छोटे बच्चे भी मिन्नी के स्कूल में ही जाते थे,उनकी जल्दी छुट्टी हो जाती थी तो मिन्नी उन्हें स्कूल के स्टाफ क्रेच में रखवा लेती थी।
माँ बीच बीच में गाँव में भी चलीं जाती थी, कुछेक दिन के लिए।उनका भी मिन्नी और बच्चों के बिना मन नहीं लगता था।बड़ा बेटा भी इसी शहर में रहता था पर कभी कभार ही मिलने जाती थी।जहाँ प्यार और इज्जत न मिले,वहाँ कोई भी जाना पंसद नहीं करता। मिन्नी माँ को बहुत स्नेह देती थीऔर बच्चे तो दादी के ही पास सोते थे। वीरेंद्र की ये दिली इच्छा थी कि एक बच्चे के लिए और सोचना चाहिए, पर मिन्नी इसके पक्ष में न हीं था
दोबारा चुनाव में भी वीरेंद्र ही जीता था।उसे पाँच दिन हो ग ए थे। चुनाव के लिए गाँव गए हुए। मिन्नी को अपने स्कूल की एन सी सी टीम के साथ नैनीताल जाना था स्कूल प्रबंधन समिति ने मिन्नी को न केवल अपने छोटे बच्चों को साथ ले जाने की इजाजत दी थी, बल्कि साथ में हाऊसमदर, कृष्णा आन्टी को ही ले जाने की इजाज़त मिली थी, बच्चे उनसे हिले मिले थे। मिन्नी को अच्छा महसूस हो रहा था ,रीति और बच्चे लगभग दस दिन साथ रह लेंगे, और वो भी इस टुअर से थोड़ा तनाव मुक्त हो जायेगी।
आज उसे माँ को गाँव छोड़ने जाना था,फिर शाम की ट्रेन थी। गाँव भी इसलिए जाना था कि वीरेंद्र को घर आये पाँच दिन हो गए थे,और अब फिर वो खुद दस दिन के लिए बाहर जा रही थी सोचा मिल आती हूँ। पैकिंग हो चुकी थी। वो अपनी सहेली की गाड़ी लेकर गाँव पहुंची, वीरेंद्र को खबर नहीं थी कि वो आ रही है। वो घर पहुंची ,तो सीधा छत पर पहुंच ग ई,उसे वहाँ से कुछ सामान भी लेना था।
वीरेंद्र केहाथ में बीयर का गिलास और बगल में गाँव की ही औरत जो रिश्ते में उस की भाभी थी, दोनों किसी बात पर खूब ठहाके लगा रहे थे।मिन्नी को देखकर दोनों ही जैसे सकपका गए थे।
सारी टू डिस्टर्ब यू गाइज,और वह.वापिस कदम नीचे उतर आई थी।
माँ सामान रख दिया है उपर, और निकल रही हूँ, मैं।
"पर बेटी कुछ देर बैठ तो सही वीरू भी आता होगा।"
"आपका कन्हैया उपर ही है रास रचा रहा है"। मैं निकलती हूँ।
दोनों बच्चों को लेकर गाड़ी में बिठाया और बेल्ट लगाकर वो निकल ग ई थी।मोबाइल आफ कर लिया था उसने।
वीरेंद्र फटाफट नीचे आया था।
माँ नमस्ते, बच्चे कहाँ है?
उपर कौन है तेरे् साथ?
अरे माँ वो तो सुनीता भाभी है, बोली थोड़ी सफाई कर देती हूँ, चौबारे की, गंदा हुआ पड़ा था काफी।
मिन्नी कहाँ है,किस चीज से आये थे आप लोग?
वो अपनी सहेली की गाड़ी लेकर आई थी मुझे छोड़ने, अब वापिस चली ग ई है।
वो अकेली है?
नहीं दोनों बच्चें हैं साथ में।
उफ़्फ़ माँ उसका वैसे ही दिमाग़ खराब था , कहीं बच्चों के साथ गाड़ी न भिड़ा दे।वो फोन मिलाता है, फोन आफ है।
माँ नीचे से आवाज देती है, आजा नीचे सुनीता हो गई सफाई कर दी तूने बहुत बढि़या।
वीरेंद्र परेशान हो गया था, वो किसी को फोन कर रहा था कि गाड़ी जल्दी लेकर आओ, दो सैकिण्ड के अंदर।
माँ बा हर दरवाजे पर खड़ी थी।
नखरे ही बहुत हैं सरपंच तेरी मैडम के तो, सुनीता ने ठिठोली करनी चाही थी। वीरेंद्र ने इशारे से उसे बाहर का रास्ता दिखाया था।
वो बेज़्ज़त सी बाहर निकली तो माँ ने उसे गंदी गाली देकर कहा था,खबरदार मेरी गली में भी दिख गई तो।
मिन्नी को गये लगभग बीस मिनिट हो ग ए थे।वीरेंद्र के पास कोई भी साधन नहीं था ।न गाड़ी न बाईक। तभी शिवजीत भाई की गाड़ी दिखी जो श हर की तरफ से आ रही थी।
वीरेंद्र उधर ही लपका था, भाई रास्ते में आपकी बहुरिया को देखा था क्या?
अरे वीरू वे अपने बालक थे क्या?
मतलब?
एक औरत बहुत स्पीड से गाड़ी चलाकर जा रही थी,और एक सीट बेल्ट से बराबर दो बच्चों को कलर कर रखाथा।
कहाँ मिले थे आपको?
बताया न ब हुत स्पीड थी अब तक तो घर पहुंच गई होगी कब की।
भाई चाबी दे गाड़ी की।
वीरेंद्र गाड़ी लेकर घर पहुंचा तो वहाँ ताला मुहँ चिढ़ा रहा था।
अब कहाँ जाऊ?क्या करू?
माँ वो घर भी नहीं पहुंची है,क्या करू?
अरे मैं क्या बताऊँ, मैं खुद परेशान हूँ, उसका मोबाइल भी बंद है।
वीरेंद्र को नशे में ये भी ध्यान नहीं रहा कि आज तो मिन्नी ने नैनीताल जाना था।वो वापिस फिर घर जाता है,सिगरेट लगा कर बैड पर पसर जाता है।तभी उसके फोन पर माँ की घंटी आती है।
वीरु ,मिन्नी अपनी स्कूल वेन से दिल्ली चली गई है,जहाँ से पाँच बजे उनकी ट्रेन हैं। बच्चे और मिन्नी बिल्कुल ठीक हैं।अभी मेरे को फोन आया था उसका, बच्चों से भी बात कराई है उसने।
ठीक है माँ।
वीरेंद्र मिन्नी का फोन मिलाता है,पर फोन आफ है।उसका मन कर रहा था कि वो गाड़ी से दिल्ली निकल जाये, रास्ते में उन लोगों से मिल लेगा, लेकिन उसे अपना ही फैंसला बचकाना लगा था। वो जानता था मिन्नी फोन आन नहीं करेगी,वो उसके गुस्से को जानता था। यही हथियार होता है उसका एक "लम्बी खामोशी।"
वो वहीं सो जाता है माँ को फोन कर दिया कि शिवजीत कल उसकी गाड़ी ले आयेगा।मैं घर ही मिलूँगा।मिन्नी का फोन आये तो बोलना बच्चों से बात करा दे मेरी।
माँ भी समझ जाती है,ये बच्चों से नहीं मिन्नी से बात करने के लिए बेचैन है।
कह दूंगी बेटा।
उसे बहुत बैचेनी हो रही थी,किसी का भी फोन सुनने को मन नहीं था फोन बंद नहीं कर सकता था। गाड़ी उठा कर आफिस चला जाता है,वहाँ रोहित से कहकर खाना मंगवाया, कुछ खाया कुछ नहीं खाया।वापिस घर आ गया।घर आकर उसने मोबाइल खोल लिया था।दस बजे मिन्नी का मैसेज था, लव यू वीरेन, मुझे जाना है दस दिन के लिए, पाँच दिन हो ग ए हैं ,अपने चाँद का दीदार किये हुए, सोचा अपने चाँद के साथ दो घूट मोहब्बत के भर के अपना व्रत तोड़ देंगे। सरप्राइज देना चाह रही थी सहेली की गाड़ी लेकर आ रही हूँ, पर समय कम था,सो मैसेज कर रही हूँ, ताकि जनाब घर पर मिल सकें। मिन्नी।
ओफ्फ वीरेंद्र ने अपना हाथ दीवार पर दे मारा था,ये मैसेज मुझसे कैसे मिस हो गया, कितनी प्यारी है वो उदास आँखों वाली लड़की, सब शिकवे गिले कितनी जल्दी भुला देती है।वो मुझसे मिलने आई और मैं नशे में सुनीता भाभी के साथ हँसी ठिठोली में लगा था
। मिन्नी आई लव यू ए लाट।।
क्रमशः
औरत आदमी और छत
लेखिका, ललिताविम्मी
भिवानी, हरियाणा